Kanwar Yatra Rule : उत्तर प्रदेश पुलिस ने कांवड़ यात्रा को लेकर नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत अब श्रद्धालु लाठी, त्रिशूल और हॉकी स्टिक जैसे सामान लेकर यात्रा नहीं कर सकेंगे। इस प्रतिबंध का उद्देश्य यात्रा को शांतिपूर्ण और अनुशासित बनाना है, ताकि किसी प्रकार की अशांति या टकराव से बचा जा सके।
लगातार घटनाओं के बाद सख्ती जरूरी मानी गई
बीते वर्षों में कांवड़ यात्रा के दौरान मारपीट, ट्रैफिक जाम और शक्ति प्रदर्शन की कई घटनाएं सामने आई हैं। श्रद्धालु अक्सर डीजे के साथ हथियारनुमा सामान लेकर चलते हैं, जिससे जनता और प्रशासन दोनों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इन बढ़ती घटनाओं को देखते हुए यह फैसला लिया गया है।
यूपी पुलिस का सख्त निर्देश जारी
उत्तर प्रदेश पुलिस ने स्पष्ट किया है कि अब से कांवड़ यात्रा में त्रिशूल, लाठी, हॉकी स्टिक जैसी वस्तुओं पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। यह कदम श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए अनिवार्य माना गया है।
सहारनपुर रेंज के डीआईजी ने दिए निर्देश
सहारनपुर रेंज के डीआईजी अभिषेक सिंह ने कांवड़ यात्रा के नए नियमों की जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि यात्रा के दौरान किसी भी तरह के शक्ति प्रदर्शन की अनुमति नहीं होगी। स्थानीय अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे इन नियमों को कड़ाई से लागू करें और उल्लंघन की स्थिति में कानूनी कार्रवाई करें।
इन जिलों में लागू हुआ नया प्रतिबंध
फिलहाल यह प्रतिबंध उत्तर प्रदेश के छह जिलों में लागू किया गया है:
- मुजफ्फरनगर
- शामली
- सहारनपुर
- बुलंदशहर
- हापुड़
- बागपत
इन जिलों में कोई भी कांवड़िया हथियारनुमा सामान लेकर यात्रा नहीं कर सकेगा। स्थानीय पुलिस हर श्रद्धालु की जांच करेगी, और आवश्यक होने पर कार्रवाई भी की जाएगी।
कांवड़ यात्रा क्यों बनी चिंता का विषय?
बीते समय में कई श्रद्धालु धार्मिक यात्रा को शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बना लेते हैं। हथियार लेकर नाचते हुए, डीजे बजाकर ट्रैफिक जाम करते हुए, और कई बार झगड़े-फसाद में लिप्त होते हुए देखे जाते हैं। इन घटनाओं से यात्रा की गरिमा पर असर पड़ता है और सामान्य नागरिकों की दिनचर्या भी प्रभावित होती है। इसी कारण प्रशासन को कठोर कदम उठाने पड़े हैं।
कांवड़ यात्रा का पौराणिक और धार्मिक महत्व
कांवड़ यात्रा हिंदू धर्म की एक प्रमुख परंपरा है, जो भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और सेवा का प्रतीक मानी जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले विष को जब भगवान शिव ने पिया, तब रावण ने कांवड़ में जल भरकर शिवजी पर चढ़ाया था। उसी घटना की स्मृति में यह यात्रा आयोजित की जाती है।
कहां से शुरू होती है कांवड़ यात्रा?
हर साल लाखों श्रद्धालु हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख और सुल्तानगंज जैसे पवित्र स्थलों से गंगाजल भरते हैं और उसे अपने-अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों में चढ़ाकर अभिषेक करते हैं। यह यात्रा सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर पूरी की जाती है और श्रद्धालु शिवभक्ति में लीन रहते हैं।
प्रशासन का उद्देश्य यात्रा की गरिमा बनाए रखना
प्रशासन का यह निर्णय किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं है। इसका मूल उद्देश्य यात्रा की मर्यादा बनाए रखना और श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा यात्रा की छवि को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए यह कदम उठाना जरूरी हो गया था।
श्रद्धालुओं से प्रशासन की अपील
प्रशासन ने कांवड़ियों से अपील की है कि वे अनुशासन और संयम बनाए रखें। यह यात्रा श्रद्धा, भक्ति और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है, इसे शक्ति प्रदर्शन या अराजकता का रूप न दें। अगर कोई श्रद्धालु इन निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।